The Hindi poetry Diaries
The Hindi poetry Diaries
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थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को,
क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।२४।
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं,
उस कविता का एक अंश ऐसे है:
मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
जौन एलिया: नज़्म 'हमेशा क़त्ल हो जाता हूँ मैं'
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,
मैंने देखा है अभी अभी उसने बिक्रम के प्राण लिए जल्दी बोलो क्या करना है घनघोर घटा घिर जाएगी छिन गया उदय हाथों से यदि मुख पर कालिख लग जाएगी
मुख से तू अविरत check here कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।
वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,
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